24 Tirthankar with Symbols in Hindi ( 24 जैन तीर्थंकर एवं उनके प्रतीक चिन्ह्र) नमस्कार दोस्तों सभी
प्रतियोगी परीक्षा के लिए अति महत्वपूर्ण टॉपिक क्योंकि आप सभी जानते है कि प्रतियोगी परीक्षा में भारत का इतिहास
से प्रश्न अवश्यपूछे जाते है । आज का टॉपिक जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर के बारे में जानेगे तथा उनके प्रतीक चिन्ह्र के
बारे में भी अध्ययन करेगे तो आइये देखते है । सभी प्रश्न के बारे में ।
24 Tirthankar with Symbols in Hindi
24 जैन तीर्थंकर एवं उनके प्रतीक चिन्ह्र
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर एवं संस्थापक ऋषभदेव थे । जैन धर्म के 23 तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे। महावीर स्वामी जैन धर्म
के 24 वे और अन्तिम तीर्थंकर थे । महावीर का जन्म 599 ई. पू. में कुंडग्राम (वैशाली) में हुआ था। महावीर के पिता
सिद्धार्थ ज्ञातृक कुल के मुखिया तथा माता त्रिशला लिच्छवि राजा चेटक की बहन थी । महावीर की पत्नी का नाम यशोदा
था एवं इनकी एक पुत्री का नाम अनोज्जा / अणोज्जा , प्रियदर्शिनी था ।
महावीर ने 30 वर्ष की आयु में माता पिता की मृत्यु के पश्चात अपने बड़े भाई जिनका नाम नंदिवर्धन से अनुमति लेकर
संन्यासी जीवन की अपनाया । 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद महावीर को जूम्भिक ग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी
के तट पर साल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ ।
दार्शनिक पद्धतियाँ एवं उनके प्रवर्तक
दर्शन | प्रवर्तक |
सांख्य दर्शन | कपिल |
योग दर्शन | पंतजालि |
न्याय दर्शन | गौतम |
वैशेषिक | कणाद या उलूक |
पूर्व मीमांसा | जैमिनी |
उत्तर मीमांसा | बादरायण |
महावीर के जामात (दामाद) जामलि उनके प्रथम अनुयायी थे । प्रथम जैन भिक्षुणी चंपा नरेश दधिवाहन की पुत्री चंदना
थी । महावीर के 11 प्रमुख शिष्य थे ष जो गणधर कहलाए । इनमें से 10 की मृत्यु महावीर के जीवनकाल में ही हो गई
थी। महावीर की मृत्यु के बाद केवल सुधर्गण जीवित थे । 72 वर्ष की आयु में महावीर की मृत्यु ( निर्वाण) 527 ई.सा
पूर्व में बिहार राज्य के पावापुरी में हो गई । चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के अंतिम वर्षों में मगध में 12 वर्षों का भीषण
अकाल पड़ने के कारण भद्रबाहू अपने शिष्यों संहित कर्नाटक चले गए ।
भद्रबाहू द्वारा रचित कल्पसुत्र मे जैन तीर्थकरों की जीवनी का उल्लेख है । अहिंसा जैन धर्म का आधारभूत बिन्दु है ।
जैन धर्म में त्रिरत्न के अनुशीलन में गृहस्थों के लिए पांच अणुव्रतों का पालन अनिवार्य है । जैन धर्म आत्मा पर विश्वास
करती है। जैन धर्म पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करता है । जैन धर्म के त्रिरत्न कौन कौन से है – 03
1.सम्यक दर्शन , 2.सम्यक ज्ञान 3.सम्यक् आचरण
कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में मैसूर के गंग वंश के मंत्री चामुंड ने 10 वी शताब्दी में विशाल बाहूबली की मूर्ति (गोमतेश्वर
की मूर्ति) का निर्माण करवाया ।
24 जैन तीर्थंकर एवं उनके प्रतीक चिह्र
24 Tirthankar with Symbols in Hindi
क्रमांक | तीर्थंकार का नाम | प्रतीक चिन्ह्र |
1 | ऋषभदेव | बैल |
2 | अजितनाथ | हाथी |
3 | संभवनाथ | घोड़ा |
4 | अभिनंदन | बंदर |
5 | सुमतिनाथ | चकवा |
6. | पदमप्रभ | कमल |
7. | सुपार्श्वनाथ | स्वास्तिक |
8 | चंद्रप्रभ | चंद्रमा |
9 | पुष्पदंत | मकर (डॉल्फिन) |
10 | शीतलनाथ | कल्प वृक्ष |
11 | श्रेयांसनाथ | गैंडा |
12 | वासु पूज्य | भैंस |
13 | विमलनाथ | शूकर |
14 | अनंतनाथ | वज्र |
15 | धर्मनाथ | वज्र |
16 | शंतिनाथ | हिरण |
17 | कुंथुनाथ | बकरा |
18 | अरहनाथ | मछली |
19 | मल्लिनाथ | कलश |
20 | मुनिसुब्रत | कछुआ |
21 | नमिनाथ | नील कमल |
22 | नेमिनाथ | शंख |
23 | पाशर्वनाथ | सर्पफण |
24 | महावीर स्वामी | सिंह |
जैन धर्म की संगीतियाँ
जैन धर्म में दो संगीतियाँ हुई थी ।
1.प्रथम संगीति पाटलिपुत्र में जो 310 ई. पू. में अध्यक्षता स्थूलभद्र ने किया था । और उस समय वहाँ का शासक चंद्रगुप्त मौर्य थे ।
2.दूसरी संगीति वल्लभी में 512 ई. में हुआ था । अध्यक्षता देवर्धिगणि ने किया थे ।
जैन सहित्य को आगम (सिद्धांत) कहा जाता है । महामस्तकाभिषेक जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण उत्सव है , जो 12 वर्ष
के अंतराल पर कर्नाटक राज्य के श्रवणबेलगोला में आयोजित किया जाता है ।
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