इस अध्याय में हम सिंधु घाटी सभ्यता के विस्तार का वर्णन करो सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है।
आइये जानते है
सिंधु घाटी सभ्यता के विस्तार का वर्णन करो

सिन्धु सभ्यता की खोज 1921 में दयाराम साहनी ने की थी।
यह सिन्धु सभ्यता भारत की प्रथम नगरीय सभ्यता थी।
सिन्धु सभ्यता का काल मेसोपोटामिया एवं मिश्र की सभ्यता के समकालीन थी।
सिन्धु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि सिन्धु सभ्यता में सर्वप्रथम हड़प्पा नामक स्थल की खोज हुई थी।
मोहनजोदड़ों की खोज 1922 ई. में राखाल दास बनर्जी ने किया था।
सिन्धु सभ्यता अपने समकालीन सभ्यताओं मिश्र एवं मेसोपोटामिया से 12 गुनी अधिक विस्तृत थी।
इस सिन्धु सभ्यता का इतिहास आद्य ऐतिहासिक काल का इतिहास है ।
इसकी विस्तार 12,99,600 वर्ग किमी. में उत्तर से दक्षिण की ओर त्रिभुजाकार आकृति में था।
धौलावीरा सिन्धु सभ्यता का तकनीकी रूप से सर्वाधिक विकसित स्थल था।
सिन्धु सभ्यता के काल निर्धारण का नवीनतम स्रोत रेडियोकार्बन विधि से किया जाता है।
मोहनजोदड़ों का अर्थ होता है मुर्दा का टीला कहते है।
विशाल स्नानागार के साक्ष्य मिले है मोहनजोदाड़ों से।
भारत का सबसे बड़ा सिन्धु सभ्यता का स्थल धौलावीरा तथा राखीगढ़ी था।
मोहनजोदड़ों से हड़प्पा सभ्यता के मशहूर कॉस्य नर्तकी की प्रतिमा मिली है।
सिन्धु- घाटी सभ्यता कॉस्ययुगीन सभ्यता थी।
बनवाली से खिलौना तथा हल की प्राप्त हुई है ।
सिन्धु सभ्यता के लोथल नगर से युग्मित शवाधान का साक्ष्य मिला है ।
कालीबंगा से जोते हुए खेत एवं नक्काशीदार ईंटों के प्रमाण प्राप्त हुए है।
सिन्धु सभ्यता की लिपि को लिखने की तकनीक को बुस्त्रोफेंडन कहा जाता है।
सिन्धु सभ्यता का समाज मातृप्रधान थी।
हड़प्पा सभ्यता के लोग कुबड़ वाले साँढ़ की पूजा करते थे।
सुरकोतदा से घोड़े की हड्डियों के अवशेष मिले है।
सिन्धु सभ्यता का स्थल सुतकाकोह शादीकौर नदी के किनारे एवं बालाकोट विदार नदी के मुहाने पर स्थित था।
हड़प्पा पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रान्त के मांटगोमरी जिले में स्थित है।
मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिन्धु प्रान्त के लरकाना जिले में स्थित है।
बहावलपुर (राजस्थान) सूखी नदी सरस्वती के किनारे स्थित है।
सिन्धु सभ्यता के सबसे बाद में (1974 ई.) में खोजा गया स्थल बनववाली है।
माप-तौल की इकाई सम्भवतः 16 के अनुपात में ( 16, 32, 64, 128, 256…) थी।
दशमलव स्केल की लम्बाई 13.2 ईंच है, इसका एक भाग 1.32 ईंच का है।
कालीबंगन का अर्थ होता है काले रंग की चूड़ियाँ, यहाँ से शल्क-क्रिया के साक्ष्य मिले हैं।
सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि को चित्राक्षर लिपि कहा गया है।
पर्दा-प्रथा एवं वेश्वयावृत्ति सिन्धु सभ्यता से प्रचलित थी।
कुम्हार की चाक चौथी शताब्दी ई.पू. में लाया गया था।
सिन्धु सभ्यता के निवासी सूती एवं ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते थे तथा वृक्ष-पूजा करते थे।
रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं जिनमें धान की खोती का प्रमाण मिलता है।
चान्हूदड़ों से गुड़िया निर्माण हेतु एक कारखाने ताथ लिपिस्टिक के अवशेष मिले है।
धौलावीरा सिन्धु सभ्यता का तकनीकी रूप से सर्वाधिक विकसित स्थल था।
पिग्गट महोदय ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ों को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वाँ राजधानी की संज्ञा दी थी।
सिन्धु सभ्यता के लोगों का पुनर्जन्म पर विश्वास था।
सिन्धु सभ्यता के लोगों के लिए पीपल का वृक्ष सर्वाधिक पूजनीय था।
लोथल से फारस की मुहरें तथा कालीबंगा से ऊँट की हड्डियों के साक्ष्य मिले है।
हड़प्पा के पूर्वी टीले को नगर टीला एवं पश्चिमी टीले को दूर्ग टीला की संज्ञा दी जाती है।
सभ्यता के स्थल में प्रवेश करने वाला पहला चौराहा ऑक्सफोर्ड सर्कस कहलाता है।
सिन्धु सभ्यता के पतन का प्रमुख कारण सम्भवतः बाढ़ था।
मोहनजोदड़ों स्नानागार के पूर्व में स्थित स्तूप का निर्माण कुषाणकाल में किया गया।
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