भारतीय संविधान का इतिहास
परिचय( Introduction )
प्रत्येक समुदाय के लिए नीति एवं निर्णय की जरूरत होती है तथा स्थिति के अनुसार जब कोई खास निर्णय लिया जाता है तो निर्णय की विशिष्ट प्रक्रिया को राजनीति (Polity) कहा जाता है।
पारस्परिक क्रियाओं की ऐसी सामाजिक व्यवस्था जिससे समाज का प्रत्येक सदस्य बन्धा हो तथा उस समाज द्वारा निर्धारित नीति प्रत्येक के लिये बाध्यकाली हो राज-व्यवस्था(Polity) कहलाती है ।
- डेविड ईस्ट ने 1953 ई. में प्रकाशित अपनी पुस्तक The Political System में सर्वप्रथम राज-व्यवस्था की परिकल्पना प्रस्तुत की ।
- राजव्यवस्था में सबसे प्रमुख निकाय संविधान Constitution होता है ।
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भारतीय संविधान का विकास (Development of Indian Constitutions)
- 1857 ई. के पूर्व के सुधार –
- 1857 ई. तक भारत का शासन ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथ मे रहा।
- ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन काल में प्रशासन का संचलान निम्न सस्थाओं के हाथ में था-
- 1. स्वामी मंडल (Court of Proprietors)
- कम्पनी के सभी साझेदारों की यह एक समिति थी।
- इस मण्डल को विधियाँ , संविधान आदेश एवं अध्यादेश बनाने का अधिकार प्राप्त था।
- 2. संचालक-मण्डल (Court of Directors) –
- इस मण्डल की सदस्य संख्या 24 थी, जिन्हें स्वामी मण्डल चुनता था।
- संचालक मण्डल का प्रमुख कार्य स्वामी मण्डल द्वारा निर्मित कानूनों, विधियों एवं नियमों को लागू करवाना था।
- 3. गवर्नर एवं उसकी परिषद् (Governor & His Council)
- भारत में स्थित बस्तियों का शासन -प्रबन्ध एक गवर्नर/गवर्नल जेनरल के हाथों में था।
- गवर्नर को शासन के संचालन में मदद करने के लिए एक पाँच-सदस्यीय परिषद थी, जिसका एक सदस्य वह स्वंय था।
- 1773 ई. में पारित रेग्युलेटिंग ऐक्ट (Regulating Act) के तहत बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जेनरल बना दिया गया तथा मद्रास एवं बंबई के गवर्नरों को इसके अधीन कर दिया गया।
- रेग्युलेटिंग ऐक्ट, 1773 द्वारा एक सुप्रीम कोर्ट (कोलकाता) में स्थापित किया गया जिसके अधिकार क्षेत्र में बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा थे।
- 1793 ई. में पारित चार्टर ऐक्ट द्वारा प्रत्येक प्रान्त का शासन एक गवर्नर एवं उसकी परिषद् के अधीन कर दिया गया।
- 1833 ई. के चार्टर ऐक्ट द्वारा बंगाल के गवर्नर जेनरल को समस्त ब्रिटिश भारतीय प्रदेशों का दायित्व सौंपते हुए उसे भारत का गवर्नर जेनरल (Governor General of India )बना दिया गया।
- भारत सरकार अधिनियम (Government India Act, 1858)-
- 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश संसद ने इस अधिनियम के अनुसार कम्पनी के शासन को समाप्त कर सीधे ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया।
- इसके तहत इण्डिया सेक्रेटरी (Secretary of state for India) का पद सृजित किया गया जिसे भारतीय मामलों में सम्राट की शक्तियों के प्रयोग का अधिकार था।
- इण्डिया सेक्रेटरी के वायसराय के साथ गुप्त पत्र व्यवहार का अधिकार दिया गया।
- इण्डिया सेक्रेटरी के कार्यों मे सहायता देने के लिए एक भारत परिषद (Indian Council) की स्थापना की गयी जिसमें ब्रिटिश सम्राट द्वारा आठ तथा कम्पनी के निर्देशक मण्डल द्वरा सात सदस्य नियुक्त किये जाते थे।
- भारत के गर्वनर जेनरल का नाम बदलकर वायसराय कर दिया गया। वह इण्डिया सेक्रेटरी के प्रति जबावदेह थे।
- इस घोषणा के अनुसार सिविल सेवा (Civil Services) में नियुक्तियाँ खुली प्रतियोगिता द्वारा की जाने लगी ।
- भारत में शिक्षित वर्ग द्वारा इसे अपने अधिकारों का मैग्नाकार्टा (MAGNACARTA) कहा गया।
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भारतीय परिषद् अधिनियम (Indian Council Act, 1861)
- इसके अनुसार गर्वनर जेनरल को विधायी , नये प्रान्त का निर्माण, किसी प्रान्त का पुनर्गठन या उसकी सीमा में परिवर्तन करने का अधिकार दिया गया।
- गवर्नर जेनरल को अध्यादेश (Ordinance) जारी करने का अधिकार इस अधिनियम के तहत् दिया गया।
- इस अधिनियम के अनुसार गर्वरल जेनरल की कार्यकारी परिषद् का विस्तार किया गया तथा उसमें कुछ गैर सरकारी सदस्यों को शामिल किया गया।
- इस अधिनियम द्वारा प्रान्तीय विधायिका तथा देश के शासन का विकेन्द्रीकरण का प्रारम्भ हुआ।
- 1873 ई. का अधिनियम-इस अधिनियम के अनुसार 1 जनवरी 1874 को ईस्ट इण्डिया कम्पनी को औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया।
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- शाही उपाधि अधिनियम (Royal Title Act, 1876)
- इस अधिनियम के अनुसार 28 अप्रैल, 1876 को एक घोषणा द्वारा महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित कर दिया गया तथा औपचारिक रूप से भारत सरकार का ब्रिटिश सरकार को अन्तरण मान्य किया गया।
- भारत परिषद् अधिनियम (Indian Council Act, 1892)
- केन्द्रीय विधान परिषद् में अतिरिक्त सदस्यों की संख्या में वृद्धि करते हुए इसमें कम से कम 10 तथा अधिकतम 16 सदस्यों की संख्या निर्धारित की गयी।
- केन्द्रीय तथा प्रान्तीय परिषद् के सदस्यों को परिषद् वाद विवाद मे भाग लेने, बजट पर विचार -विमर्श करने तथा कार्यपालिका से इससे सम्बन्धित प्रश्न करने का अधिकार दिया गया।
- भारत सरकार अधिनियम (Govt. of India Act, 1909)
- इनकी सिफारिश पर 1909 में यह अधिनियम पारित हुआ जिसे मॉर्ले-मिन्टो सुधार के नाम से भी जाना जाता है।
- सर्वप्रथम इस अधिनियम के द्वारा मुस्लिम एवं अन्य सम्प्रदायों, समुदायों एवं जातियों को विधान परिषदों में प्रतिनिधित्व दिया गया।
- भारत सरकार अधिनियम (India Council Act, 1919)
- केन्द्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गयी, प्रथम को राज्य परिषद(State Council) तथा द्तीय को केन्द्रीय विधान सभा (Central Legislative Assembly) कहा गया।
- इस अधिनियम के अनुसार प्रान्तो में द्वैध शासन की व्यवस्था की गयी जिसके तहत प्रान्तीय विषयों को आरक्षित एवं हस्तान्तरित दो वर्गों में विभाजित कर दिया गया।
- प्रान्तों का राजस्व केन्द्रीय राजस्व से अलग कर दिया गया।
- केन्दीय विधान सभा में मुसलमानों, सिक्खों तथा इसाइयों के लिये पृथक् निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था की गयी, इसे मान्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी कहा जाता है।
- इस अधिनियम द्वारा भारत के आठ प्रान्तों में विधान परिषदों का गठन किया गया।
- भारत सरकार अधिनियम (Govt. of India Act, 1935)
- इस अधिनियम द्वारा भारतीय संघ का प्रस्ताव किया गया जिसमें भारतीय प्रान्तों को अनिवार्यतः शामिल किया गया तथा केन्द्र तथा संघ के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया।
- परन्तु, देशी रियासतों का शामिल होने उनके नरेशों की इच्छा पर निर्भर था
- गवर्नर जेनरल को व्यापक शक्तियाँ प्रदान की गयी।
- केन्द्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गयी जिसे राज्य परिष्द, सदस्य संख्या -260 को उच्च सदन तथा केन्द्रीय विधान सभा का गठन किया गया।
- भारत में 11 प्रान्तों में विधान सभा का गठन किया गया।
- प्रान्तों में दै्वध शासन प्रणाली समाप्त कर दी गई परन्तु केन्द्र में लागू की गयी।
- इस अधिनियम के द्वारा प्रान्तीय स्वतन्त्रता(Provincial Autonomy) प्रभावी की गयी तथा विधायी शक्तियों का केन्द्र तथा प्रान्तो के बीच विभाजन हुआ।
- इस अधिनियम के द्वरा एक संघीय न्यायालय की स्थापना की गयी जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीश थे।
- संघीय न्यायालय का अधिकार क्षेत्र प्रान्तों और रियासतों तक विस्तृत था तथा इससे संबंधित अन्तिम शक्ति प्रिवी काउंसिल (लंदन) को प्राप्त थी
- इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद् समाप्त कर दिया गया तथा भारतीय शासन पर ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता स्थापित की गयी। साम्प्रदयिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार किया गया।
- इस अधिनियम के द्वरा बर्मा (म्यान्मार) को भारत से अलग कर दिया गया।
- इस अधिनियम के अनुसार भारत में पहली बार संसदीय प्रणाली की सरकार को पूर्ण तथा कार्यन्वित किया गया।
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