भारतीय दर्शन का विकास Rise of Indian Philosophy

आज का अध्याय बहुत ही महत्वपूर्ण है जाने भारतीय दर्शन का विकास (Rise of Indian Philosophy)  इस अध्याय से प्रतियोगी

परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते है। भारतीय दर्शन का विकास Rise of Indian Philosophy के बारे मे जाने

भारतीय दर्शन का विकास (Rise of Indian Philosophy)

भारतीय दर्शन का विकास Rise of Indian Philosophy

उत्तर वैदिक काल मे रचित उपनिषदों की रचना के साथ भारतीय दर्शन ने जन्म लिया।

उत्तर वैदिक काल में ही भारतीय षड्दर्शन का विकास हुआ सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, तथा वेदांत का।

सबसे प्राचीन दर्शन है सांख्य दर्शन है।

प्राचीन भारतीय दर्शन सम्बन्धी विचार धाराएँ वेदांत दर्शन में आकार चरमोत्कर्ष को प्राप्त करती है।

शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित दर्शन अद्धैत वेदांत महत्वपूर्ण है।

भारतीय दर्शन का विकास क्रम इस प्रकार है आइये जानते है।

सांख्य दर्शन

वैशेषिक

न्याय

योग

मीमांसा

वेदांत

सांख्य दर्शन

सांख्य दर्शन का प्रवर्तक महार्षि कपिल ने किया था।

महर्षि कपिल ने सम्भवतः 7वीं शताब्दी में सांख्य दर्शन के सूत्रों की रचना की।

सांख्य शब्द का शाब्दिक अर्थ सम्यक ज्ञान होता है।

सांख्य दर्शन में आत्म के लिए पुरुष शब्द का इस्तेमाल किया गया है।

वैशिषिक दर्शन

 इस दर्शक के प्रणेता उलुग या कणाद थे।

वैशेषिक दर्शन के अनुसार जीवात्मा अनेक है परन्तु परमात्मा एक है।

इसे आस्तिक दर्शन भी कहा जाता है वैशेषिक दर्शन वेद की प्रमाणिकता को स्वीकार करता है।

न्याय दर्शन

इस दर्शन का ज्ञान गौतम ऋषि द्वारा प्रतिपादित न्यायसूत्र से प्राप्त होता है।

न्याय दर्शन ईश्वर के अस्तित्व को मानता है यह ईश्वर को चैतन्य (ज्ञान) से युक्त आत्मा कहता है।

योग दर्शन

इस दर्शन का प्रतिपादन पतंजलि जी ने किया था।

यह दर्शन विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय माना जाता है।

योग ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकरता है।

यह दर्शन मोक्ष की प्राप्ति  के लिए विवेक ज्ञान के साथ योगाभ्यास पर भी बल देता है।

मीमांसा दर्शन

मीमांसा एक आस्तिक दर्शन है। यह पूर्णतः वेदों पर आधारित है।

यह धर्म वैदिक कर्मकांडो की मीमांसा करता है।

इस दर्शन के प्रवर्तक जैमिनी थे. यह दर्शन वैदिक कर्मकांडों की पैरवी करता है।

वेदांत दर्शन

वेदांत दर्शन का आधार उपनिषद् है।

वेदांत दर्शन का विवेचन बदरायन रचित ब्रह्रासूत्र से प्राप्त होता है।

ब्रह्रासूत्र विभिन्न उपनिषदों में दी गई शिक्षाओं में सामंजस्य लाने के लिए रची गई थी।

इस दर्शन को उत्तर मीमांसा अथवा शारीरिक मीमांसा भी कहते है।

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