अंग्रेजी शासन के दौरान बड़े स्तर पर विद्रोह हुए, जिनकी प्रकृति भिन्न -भिन् प्रकार की थी, इनके विवरण निम्नवत् है आज के समय में होने वाली महत्वपूर्ण परीक्षाओं में पूछे जाने वाले प्रश्नों का भी महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे उम्मीदवार जो भी किसी कॉम्पिटेटिव एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं उनके लिए यह आर्टिकल बहुत ही उपयोगी साबित हो सकता है तो आइये हम देखते है प्रमुख आन्दोलन एवं विद्रोह के बारे में
प्रमुख आन्दोलन एव विद्रोह (Important Movements & Revolts)

अनुक्रम ( इनके बारे मे जानेगे )
- संन्यासी विद्रोह (1770-1800 ई. )
- फकीर विद्रोह ( 1776-77 ई. )
- चुआर विद्रोह ( 1768 ई.)
- पॉलीगारो का विद्रोह (17799-1809 ई.)
- वेलूथम्पी का विद्रोह ( 1805 ई.)
- भील विद्रोह ( 1812-46)
- रामोसी विद्रोह ( 1822-29)
- अहोम विद्रोह ( 1828 ई.)
- वहावी विद्रोह ( 1831 ई.)
- कोल आन्दोलन ( 1831 -32 ई.)
- खासी विद्रोह ( 1833 ई.)
- फरायजी आन्दोलन (1839 -58 ई.)
- संथाल विद्रोह (1855-56 ई.)
- मुंडा विद्रोह ( (1899-1900 ई.)
- पाइक विद्रोह (1817-25 ई.)
- रंपा विद्रोह ( 1879 ई.)
- कच्छ का विद्रोह (1831 ई.)
- सूरत का नमक विद्रोह ( 1844 ई.)
- मोपला विद्रोह ( 1836 -1921 ई. )
प्रमुख आंदोलन एवं विद्रोह में सबसे पहला विद्रोह था संन्यासी विद्रोह
संन्यासी विद्रोह ( Saints Rebellion)

1770 ई. के भयानक अकाल तथा अंग्रेजी सरकार द्वारा बरती गई उदासीनता एवं तीर्थ स्थनों पर जाने पर प्रतिबन्ध के कारण संन्यासियों का विद्रोह हुआ। संन्यासी विद्रोह की स्पष्ट जानकारी बंकिम चन्द चटर्जी के उपन्यास आनान्द मठ से मिलती है। उस समय ब्रिटिश भारत के बंगाल और बिहार प्रान्त में हुआ था
फकीर विद्रोह ( Fakir Rebellion)
1776-77 ई. में बंगाल के फकीरों ने मजनू शाह एवं चिराग शाह अली के नेतृत्व में प्रसिद्ध फकीर विद्रोह किया . यह एक फकीर बंगाल के एक घुमन्तू मुसलमानों का एक समूह था।
चुआर विद्रोह ( Chuar Rebellion)
यह विद्रोह मिदनापुर जिले के आदिम जाति के चुआर लोगों ने 1768 ई. में भूमिकर तथा अकाल से उत्पन्न आर्थिक संकट के चलते विद्रोह किया।
पॉलीगारो का विद्रोह ( Polygaro Rebellion)
1801 ई. में तमिलनाडू के पॉलीगारों ने ब्रिटिश भूमि-कर व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह किया। इस विद्रोह का नेतृत्व वीर पं. काट्टावायान ने किया था ।
वेलूथम्पी का विद्रोह ( Veluthampi Rebellion)
1805 ई. में ट्रावनकोर रियासत के दीवानों एवं इस विद्रोह के नेता बेलू थम्पी ने अंग्रेजों के विरूद्ध सहायक सन्धि के विवाद को लेकर विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को कुचलने में अग्रेजों को एक बड़ी सैन्य टुकड़ी लगानी पड़ी।
भील विद्रोह ( Bhil Rebellion)

भारत के पश्चिमी तट पर स्थित खानदेश में भीलों की आदिम जाति ने 1812-19 ई, 1825 ई, 1831 ई. एवं 1846 ई. में भील विद्रोह किया। इस विद्रोह का प्रमुख नेता सेवरम् था
रामोसी विद्रोह (Ramosi Rebellion)
पश्चिमी घाट में रहने वाली रामोसी जाति ने 1822 ई. में रामोसी विद्रोह किया। इस विद्रोह का नेतृत्व सरदार चित्तर सिंह ने किया।
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अहोम विद्रोह ( Ahom Rebellion)
1828 ई. में असम के अहोम अभिजात वर्ग ने अहोम राज्य को अंग्रेजों द्वारा हथियाने के प्रयास के विरोध में विद्रोह किया। इस विद्रोह का नेतृत्व गोमधर कुँवर ने किया।
वहाबी विद्रोह( Wahhabi Rebellion)
1831 -32 ई. में टीटू मीर (मीर निसार अली) के नेतृत्व में बरासाट (बंगाल) में वहाबी विद्रोह हुआ। यह विद्रोह दाढ़ी पर कर लगाये जाने के प्रतिक्रिया के फलस्वरूप हुआ।
कोल आन्दोलन (Coal movement)
1831 ई. में कोलों द्वारा सिंहभूम, पलामू, हजारीबाग, मानभूम में जमींदारों एवं ठेकेदारों के खिलाफ नारायण राव के नेतृत्व में कोल विद्रोह(कोल आदिवासियों का विद्रोह) हुआ। कोल विद्रोह का कारण ठेकेदारों एवं जमींदारों द्वरा भूमिकर 35 प्रतिशत बढ़ा देने तथा आदिवासियों के 12 गाँव सिक्खों एवं मुसलमानों को देना था।
खासी विद्रोह (Khasi Rebellion)

अंग्रेज अधिकारियों की खासी पहाड़ी एवं सिलहट के बीच सड़क बनाकर सैनिक मार्ग बनाने की योजना के विरोध में राजा तिरुत सिंह के नेतृत्व में विद्रोह किया। इस विद्रोह को 1833 ई. में ही दबा दिया गया।
संथाल विद्रोह ( Santhal Rebellion)
यह विद्रोह दामन-ए-कोह (भागलपुर से राजमहल तक का क्षेत्र) में हुआ। इस विद्रोह का नेतृत्व सिद्धू-कान्हू ने किया। विद्रोह भूमिकर अधिकाारियों द्वारा किये जानेवाले दुर्व्यवहार तथा जमींदार, साहूकार आदि द्वारा किये जाने वाले अत्याचार के खिलाफ किया गया था। कमीशनर ब्राउन एवं मेजर जेनरल लॉयड ने 1856 ई. में इस विद्रोह को दबाने में सफलता पाई। इस विद्रोह के परिणामस्वपरू पृथक संथाल परगना का निर्माण हुआ।
मुंडा विद्रोह ( Shaved rebellion)
तत्कालीन बिहार के दक्षिणी छोटानागपुर क्षेत्र में मुण्डा आदिवासियों ने बिरसा मुंडा के नेतृत्व में 1899-1900 ई. की अवधि में विद्रोह किया। यह विद्रोह जागीरदारों, ठेकेदारों, बनियों, सूदखोरो एवं अंग्रेजों के विरुद्ध था। बिरसा मुड़ा ने उलगुलान की उपाधि धारण की एवं स्वंय को ईश्वर का दूत घोषित किया। इस विद्रोह को 1900 ई. तक दबा दिया गया।
पाइक विद्रोह (Pike rebellion)
उड़ीसा में 1817-25 ई. की अवधि में पाइक जाति के लोगों ने जगबंधु बख्शी के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध पाइक विद्रोह किया।
रंपा विद्रोह ( Rampa Rebellion)
आंध्र के तटवर्ती क्षेत्रों में रंपा पहाड़ी के आस-पास रहने वाली आदिवासी जनजातियों ने 1879 ई. में विद्रोह किया। जिसे सरकार द्वराा 1880 ई. में दबा दिया गया।
कच्छ का विद्रोह ( Revolt of Kutch)
कच्छ एवं काठियावाड़ के राजा भारसल को पद्च्यूत कर अंग्रेजों ने अपनी शर्तों के साथ उसके अल्पायु पुत्र को सिंहासन पर बिठाया, जिसके विरुद्ध भारमल के समर्थकों ने 1819 ई. एवं 1831 ई. में विद्रोह किया।
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सूरत का नमक विद्रोह ( Surat’s salt rebellion)
1844 ई. में अंग्रेजों ने नमक कर 50 पैसे से बढ़ाकर 1 रुपया कर दिया। इसके बाद स्थानीय लोगो ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। विद्रोह की प्रचंडता को देखतने हुए सरकार को कर में की गई बढ़ोत्तरी वापस लेनी पड़ी।
मोपला विद्रोह (Mopala Rebellion) 1836-1921ई.

दक्षिणी मालाबार (केरल) के मुसलमान पट्टेदारों (इनामदार) तथा खेतिहरों (वेरुमपट्टमादार) को प्रायः मोपला कहते थे। आरम्भ में इनकी उत्पति हिन्दुओं की तिय्या जाति में हुई बाद में वे मुसलमान बन गये। इनमें कुछ तो अरबी मुसलमानों के वंशज थे जो 7वीं एवं 8 वीं शताब्दी में मालाबार तट पर बस गये थे। अंग्रेजों द्वारा मालाबार में स्थाई बन्दोबस्त लागू किया गया, जिससे स्थानीय जमींदारों के अधिकार बढ़ गये तथा उन्होंने मोपला किसानों को भूमि से बेदखत करना आरम्भ किया। इसी के विरोध में यह विद्रोह हुआ। यह विद्रोह 1836 ई. से आरम्भ होकर 1921 ई. तक रुप-रुक कर हुआ। इस विद्रोह के प्रमुख नेता सैय्यद अली मुसलियार थे।
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