दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश

दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश / दक्षिण के प्रमुख राज्य कौन कौन थे /दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश

भारत में दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश  इस प्रकार  है जो प्रतियोगी परीक्षीओं में बार बार इस अध्याय से प्रश्न पूछे जाते है। जानेगे दक्षिण भारत के प्रमुख राज्य कौन कौन थे /दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश

आइये हम सब मिलकर इस अध्याय को अच्छे से पढ़े और ये जाने की भारत पर दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश के बारे में।

दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश

दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश
दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश

→ पल्लव वंश

→ राष्ट्रकूट वंश

→ चालुक्य वंश (कल्याणी वंश)

→ चालुक्य वंश (वातापी वंश)

→ चालुक्य वंश (वेंगी वंश)

→ यादव वंश

→ होयसल वंश

→ कदंब वंश

→ गंग वंश

→ चोल वंश

पल्लव वंश

इस वंश की स्थापना सिंह विष्णु ने ( 576-600 ई.) में की थी, उसने काँची (तमिलनाडू) को अपनी राजधानी बनाया, यह वैष्णव धर्म का उपासक था।

इनकी प्रसिद्ध ग्रन्थ किरातार्जुनीयम के रचनाकार भारवि सिंह विष्णु का दरबारी कवि था।

पल्लव वंश का अन्तिम शासक अपराजित था।

इस वंश के शासक नरसिंहवर्मन-। द्वरा एकाश्मक रथ (महाबलिपुरम्) का निर्माण कराया गया।

एकाश्म रथ चट्टान काटकर बनाया गया है तथा इसे धर्मराज रथ भी कहा जाता है।

पल्लव शासक नरसिंहवर्मन-। द्वारा वातापीकोंडा की उपधि धारण की गई।

पल्लव शासक महेन्द्रवर्मन -। द्वारा मतविलास प्रहसन नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की गई।

दशकुमारचरितम् नामक प्रसिद्ध साहित्यक रचना के रचनाकार दंडी पल्लव शासक नन्दीवर्मन का दरबारी कवि था।

पल्लव शासक नन्दीवर्मन का ही समकालीन प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरूमड़ग अलवर थे।

दंतिवर्मन को पल्लव अभिलेखों में पल्लव कूलभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया है।

पल्लवकालीन मन्दिरों की प्रमुख विशेषता है कि इन्हें एक चट्टान को काटकर बनाया गया है।

नरसिंहवर्मन-। ने एक बंदरगाह नगर महाबलिपुरम् की स्थापना काँची के नजदीक की थी।

राष्ट्रकूट वंश

 दांतिदुर्गा ने 752 ई. में राष्ट्रकूट राजवंश की स्थापना की थी।

राष्ट्रकूट वंश की राजधानी म्यानखेड (वर्तमान शोलापुर के निकट) थी।

इस वंश के प्रमुख शासक इस प्रकार  थे आप भी जाने  दांतिदुर्गा ( 736-56 ई.) कृष्णा -। (756-72 ई.) , ध्रुव (779-93 ई.), गोविंद-।।। (793-814 ई.)  अमोघवर्ष (814-78 ई.) , इन्द्र-।।। ( 914-27 ई.) तथा कृष्णा -।।। (936-65 ई.) आदि

कृष्ण-। ने प्रसिद्ध कैलाश मन्दिर (ऐलोरा) का निर्माण करवाया था।

कन्नौज पर अधिकार करने के उद्देश्य से त्रिपक्षीय संघर्ष में सर्वप्रथम भाग लेने वाला राष्ट्रकूट शासक ध्रूव था।

प्रतिहार नरेश वत्सराज एवं पाल नरेश धर्मपाल को त्रिपक्षीय संघर्ष में राष्ट्रकूट शासक ध्रूव ने पराजित किया था।

राष्ट्रकूट नरेश ध्रुव को धारावर्ष के नाम से भी जाना जाता था।

चक्रायुद्ध एवं उसके संरक्षक पाल नरेश धर्मपाल तथा प्रतिहार शासक नागभट्ट-।। को त्रिपक्षीय संघर्ष में परास्त करने वाला राष्ट्रकूट शासक गोविंद-।।। था।

राष्ट्रकूट वंश के अन्तिम महान शासक कृष्ण-।।। हुआ।

चालुक्य वंश

इस वंश को हम कल्याणी वंश के नाम से भी जानते है इसकी स्थापना तैलप-।।। ने किया था।

तैलप-।। ने अपनी राजधानी मान्यखेड में स्थापित की।

चालुक्य वंश (कल्याणी वंश) के शासक सोमेश्वर-। ने मान्यखेड़ा से हटाकर राजधानी कर्नाटक के कल्याणी में स्थापित की।

विक्रमादित्य-VI को कल्याणी के चालुक्य वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली  शासक माना जाता है।

इनके दरबार में विज्ञानेश्वर तथा विल्हण जैसे विद्वान थे।

चालुक्य वंश के प्रमुख शासक कौन कौन थे – तैलप-।, तैलप -।।, विक्रमादित्य-VI, ठप-VI, विक्रमादित्य, सोमेश्वर ।, सोमेश्वर-।।, सोमेश्वर -।।।, तैलप-VI

कल्याणी वंश/चालुक्य वंश का अन्तिम शासक सोमेश्वर-IV था।

चालुक्य वंश (वातापी)

इस वंश को बादामी के चालुक्य भी कहते है।

इसकी स्थापना जयसिंह ने की तथा वातापी को अपना राजधानी बनाया।

हर्षवर्धन को हराकर पुलकेशिन-।। द्वारा परमेश्वर की उपाधि धारण की गई।

पुलकेशिन-।। ने दक्षिणापथेश्वर की उपाधि धारण की थी।

चालुक्य वंश (वेंगी)

वेंगी के चालुक्य वंश की स्थापना विष्णुवर्धन ने की, इसकी राजधानी वेंगी (आन्ध्र प्रदेश) थी।

वेंगी के चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी शासक विजयादित्य था।

यादव वंश

इस वंश की स्थापना भिल्लभ-V ने यादव वंश के शासन की स्थापना देवगिरी में की।

देवगिरी ही इस वंश की राजधानी थी।

राजा सिंहण (1210-46 ई.) यादव वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था।

इस वंश का अन्तिम शासक रामचंद था जिसका खात्मा अलाउद्दीन खिलजी के सैन्य जनरल मलिक काफूर ने कर दिया।

सिंहण के दरबार मे संगीत रत्नाकर के रचनाकार सांरधर तथा प्रसिद्ध ज्योतिषी चंगदेव था।

होयसल वंश

इस वंश की स्थापना विष्णुवर्द्धन ने इस वंश की स्थापना 12वीं शताब्दी में की।

इस वंश की राजधानी द्वारसमुद्र (कर्नाटक) मे थी।

होयसल राज्य भले द्वारसमुद्र में कायम हुआ परन्तु इस वंश का आर्विभाव 12वीं शताब्दी में मैसूर में हुआ, इसका उदय यादव वंश की एक शाखा से हुआ।

विष्णुवर्धन ने 1117 ई. में बेलूर के चेन्ना केशव मन्दिर का निर्माण कराया।

अलाउद्दीन खिलजी के सैन्य – जनरल मलिक काफूर ने ही इस वंश के शासन का अन्त किया।

होयसल वंश का अन्तिम शासक वीर बल्लाल -।।। था।

कदंब वंश

मयूर शर्मन द्वारा इस वंश की स्थापना किये जान का उल्लेख तेलगुड़ा-लेख से प्राप्त होता है।

इस वंश की राजधानी वनवासी थी।

इस राज्य की स्थापना आन्ध्र-सातवाहन राज्य के पतनावशेष पर हुआ।

काकुतस्थ वर्मन इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।

इस वंश के शासन का अन्त कर अलाउद्दीन खिलजी ने इस राज्य पर अधिकार कर लिया।

गंग वंश

गंगो के राज्य का विस्तार मैसूर रियासत के अधिकांश भाग पर था।

इस राज्य की नींव चौथी शताब्दी ई. में दिदिग एवं माधव-। ने डाली

गंग राज्य की आरम्भिक राजधानी कुलवल (कोलार) में थी।

5वीं शताब्दी में इस वंश के शासक हरिवर्मन ने राज्य की राजधानी तलकाड (मैसूल जिला) में स्थापित की

चोल वंश

चोल राज्य की स्थापना  विजयालय (850-87 ई.) द्वारा की गई थी।

चोल साम्राज्य की राजधानी तंजावुर (तंजौर) में थी।

विजयालय द्वारा नरकेसरी की उपाधि धारण की गई थी।

राजाराज-। द्वारा तंजौर के प्रसिद्ध वृहदेश्वर अथवा राजराजेश्वर मन्दिर का निर्माण कराया।

राजेन्द्र-। के कार्यकाल में चोल साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ।

चोल साम्राज्य का अन्तिम शासक  राजेन्द्र-।।। था।

 

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